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अ॒स्य दे॒वस्य॑ सं॒सद्यनी॑के॒ यं मर्ता॑सः श्ये॒तं ज॑गृ॒भ्रे। नि यो गृभं॒ पौरु॑षेयीमु॒वोच॑ दु॒रोक॑म॒ग्निरा॒यवे॑ शुशोच ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asya devasya saṁsady anīke yam martāsaḥ śyetaṁ jagṛbhre | ni yo gṛbham pauruṣeyīm uvoca durokam agnir āyave śuśoca ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒स्य। दे॒वस्य॑। स॒म्ऽसदि॑। अनी॑के। यम्। मर्ता॑सः। श्ये॒तम्। ज॒गृ॒भ्रे। नि। यः। गृभ॑म्। पौरु॑षेयीम्। उ॒वोच॑। दुः॒ऽओक॑म्। अ॒ग्निः। आ॒यवे॑। शु॒शो॒च॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:4» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:5» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कैसे विद्वान् को सभासद् और अध्यक्ष करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (यः) जो (पौरुषेयीम्) पुरुषसम्बन्धी कार्य्यों की रीति का (नि गृभम्) निरन्तर ग्रहण करने को (उवोच) कहता है (अग्निः) अग्नि के तुल्य तेजस्वी (आयवे) जीवन के लिये (शुशोच) शोच करता है (यम्) जिस (श्येतम्) श्वेत (दुरोकम्) शत्रुओं से दुःख के साथ सेवने योग्य को (अस्य) इस (देवस्य) विद्वान् की (संसदि) सभा वा (अनीके) सेना में (मर्त्तासः) मनुष्य (जगृभ्रे) ग्रहण करते हैं, उसी को सभापति सेनापति करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों को चाहिये कि अच्छे प्रकार परीक्षा कर सभासदों और अध्यक्षों को नियत करें। जो बलवान् और अधिक अवस्थावाले हों, वे ही राज्य को अच्छे प्रकार भूषित कर सकते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसं कीदृशं सभ्यमध्यक्षं च कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यः पौरुषेयीं निगृभमुवोचाग्निरिवाऽऽयवे शुशोच यं श्येतं दुरोकमस्य देवस्य संसद्यनीके च मर्त्तासो जगृभ्रे तमेव सभ्यं सेनापतिं च कुरुत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) (देवस्य) विदुषः (संसदि) सभायाम् (अनीके) सैन्ये (यम्) (मर्त्तासः) मनुष्याः (श्येतम्) श्वेतं शुभ्रम् (जगृभ्रे) गृह्णन्ति (नि) (यः) (गृभम्) गृहीतुम् (पौरुषेयीम्) पौरुषेयस्य रीतिम् (उवोच) वदति (दुरोकम्) शत्रुभिर्दुःसेवम् (अग्निः) पावक इव (आयवे) जीवनाय (शुशोच) शोचति ॥३॥
भावार्थभाषाः - विद्वद्भिः सुपरीक्ष्य विद्वांस एव सभ्या अध्यक्षाश्च कर्त्तव्याः ये वीर्य्यवन्तो दीर्घायुषो भवन्ति त एव राज्यं सुभूषयितुमर्हन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वानांनी चांगल्या प्रकारे परीक्षा करून सभासद व अध्यक्ष नियुक्त करावेत, जे बलवान, दीर्घायुषी असतील तेच राज्याला चांगल्या प्रकारे भूषित करू शकतात. ॥ ३ ॥